क्रोध का परिणाम
एक पिता (आदम) के दो संतान होते है। उनका बड़ा बेटा (कैन) भूमि पर खेती करने वाला किसान होता है और छोटा बेटा (हाबिल) भेड़ बकरियों का चरवाहा होता है। कुछ समय बाद ऐसा होता है कि दोनो ही बेटे अपने अपने व्यवसाय के अनुसार परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए कुछ भेंट चढ़ाने जाते है। जिसमे से उनका बड़ा बेटा अपनी खेती की उपज में से भूमि की उपज भेंट चढ़ाने जाता है। वैसे ही उनका छोटा बेटा भी भेड़ बकरियों के कई पहले बच्चे की भेंट चढ़ाने और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाने जाता है।
लेकिन परमेश्वर केवल छोटे भाई की भेंट को ग्रहण करते है और बड़े भाई की भेंट ग्रहण नहीं करते है। इस बात पर बड़ा भाई अति क्रोधित होता है और उसके मुंह पर एक उदासी छा जाती है। तब परमेश्वर पूछते है कि तू क्यों क्रोधित हुआ और तेरे मुंह पर उदासी क्यों छा गई है? परमेश्वर उसे ये भी बताते है कि यदि तू भला करता तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाती, परंतु यदि तू भला न करे पाप तेरे द्वार पर ही छिपा हुआ है और उसकी लालसा तेरी और होगी, परमेश्वर कहते है कि तुझे पाप पर प्रभुता करनी है, यानी पाप इसके ऊपर हावी न होने पाए बल्कि वह पाप के ऊपर जयवंत होने पाए। अतः मैदान में उसका बड़ा भाई अपने छोटे भाई को अकेले पाकर उसकी हत्या कर देता है। और जब परमेश्वर उससे प्रश्न पूछते है तो वह परमेश्वर को सीधा जवाब देने के बजाए उल्टा जवाब देता है कि मुझे नहीं मालूम क्या मैं उसका रखवाला हू।
अब ऐसा क्या होता है जिसके कारण बड़ा भाई बहुत ही क्रोधित हुआ और उसके मुंह पर उदासी छा गई? हम कल्पना कर सकते कि यदि हम दो बेटे है और हम अपने पिता को प्रसन्न करने के लिए अपने अपने कार्य के अनुसार उपहार लेके जाते है, लेकिन हमारे पिता केवल एक के ही उपहार को स्वीकार करें, परंतु दूसरे के उपहार को त्याग दें। तब यह स्वाभाविक होगा कि हम अपने उपहार और अपने भाई के उपहार की तुलना करे और इस निष्कर्ष पर आयेंगे कि क्यों हमारे पिता ने हमारा उपहार स्वीकार नहीं किया? शायद हमारे पिता हमसे ज्यादा हमारे छोटे भाई को प्रिय समझते है या फिर हमारे पिता हमसे ज्यादा उससे प्रीति रखते है और यह सब कल्पना हमारा हृदय में एक जलन, कड़वाहट, क्रोध को भर दें।
जब हम बच्चे होते है तो अक्सर हमारी दृष्टि इस प्रकार होती है कि मेरे माता पिता मुझे कम स्नेह करते है और मेरे छोटे भाई या बहनों को ज्यादा स्नेह करते है। क्योंकि हमारा दृष्टिकोण हमारी आयु की तरह ही छोटा होता है, हमारा दृष्टिकोण इतना विकसित नहीं होता। परंतु यह हमारा दृष्टिकोण केवल तब तक ही रहता है जब तक हमारा बालकों जैसा मन होता है। लेकिन जब हम खुद एक माता पिता बनते है तब हम ये बात भली भांति समझ पाते है कि एक माता पिता की दृष्टि से वे सारे बच्चों को बराबर स्नेह करते है। ठीक ऐसे ही परमेश्वर की दृष्टि में बेटे बहुमूल्य और अनमोल होते है, दोनो के उपहार उनके अनुसार बेहतर होते है।
फिर क्यों परमेश्वर बड़े भाई की भेंट स्वीकार नहीं करते है?
क्योंकि मनुष्य से बढ़कर परमेश्वर की दृष्टि होती है, मनुष्य तो केवल बाहरी रूप देखते है लेकिन परमेश्वर की दृष्टि तो मनुष्य के मन (1 शमुएल 16:7) पर लगी रहती है। इसलिए परमेश्वर जान गए थे कि बड़े भाई ने भली इच्छा से भेंट नहीं चढ़ाई थी, परमेश्वर ये जान गए थे कि उसके भली इच्छा से भेंट न चढ़ाने के पीछे पाप छिपा हुआ था। इसलिए परमेश्वर ने उसकी भेंट स्वीकार नहीं की थी। लेकिन उस भाई के बड़े भाई के ह्रदय में इतनी जलन, कड़वाहट, क्रोध बढ़ गई कि उसका क्रोध बड़े क्रोध का और फिर उसके क्रोध ने उसके खुद के ही भाई की हत्या का रूप ले लिया था, जब तक वह यह समझ पाता, तब तक वह अपने छोटे भाई खो चुका था, और परमेश्वर की दृष्टि में भी वह एक हत्यारा बन चुका था। उसने इतनी सी बात पर क्रोधित होकर अपने ही भाई की हत्या कर दी।
परमेश्वर का वचन जलन, उदासी, कड़वाहट, क्रोध, हत्या के बारे में क्या कहते है?
जलन – क्योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नष्ट हो जाता है और भोला जलते जलते मर मिटता है (अय्यूब 5:2), कैन के ह्रदय में ये खेद था कि उसकी भेंट क्यों ग्रहण नहीं कि गई है, जिसके कारण वह अंदर से आत्मिकता से नष्ट हुआ!
उदासी – शांत मन, तन का जीवन है परन्तु मन के जलने से हड्डिया भी जल जाती है (नीतिवचन 14:30), मन आनंदित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दुखी होने से आत्मा भी निराश होती है (नीतिवचन 15:13), कैन कि भेंट स्वीकार नहीं की गई इसलिए उसका शांत मन उदासी में डूब गया और मन आनंदित न होने से उसकी आत्मा भी निराश हो गई!
कड़वाहट – कैन के ह्रदय में उसके भाई की भेंट स्वीकार की गई इसलिए उसका ह्रदय कड़वी डाह से भर गया, और ये सब परमेश्वर की और से नहीं वरन शैतान की और से आता है (याकूब 3:14-15)
क्रोध – जो विलम्ब से क्रोध करने वाला है वह बड़ा समझवाला है, परन्तु जो अधीर है वह मूढ़ता की बढ़ती करता है (नीतिवचन 14:29) कैन के भाई का उपहार स्वीकारा गया इसलिए उसने क्रोध करने में जल्दबाजी की जिससे उसका क्रोध बहुत बढ़ गया था!
हत्या – परमेश्वर की व्यवस्था हमें कहती है की हम हत्या न करें (रोमियो 13:9), लेकिन क्रोध में आकर कैन ने अपने ही एकलौता भाई का खून कर दिया!
यदि हम उसकी जगह पहुंचे तो हम कैसे परमेश्वर के वचन और सामर्थ्य के द्वारा उन पर जय पाए? सबसे पहले हर एक विषय को गंभीरता से प्रार्थना में रखिये!
जलन- जब हमें जलन का एहसास हो तो उसको आत्मा के फल के द्वारा परमेश्वर की बुद्धि द्वारा उसपर आत्म संयम करें!
उदासी – जब हमारा मन उदास हो तो उससे बढ़ने न दे परंतु जैसे पौलुस जेल में आनंदित था और यह लिखा सदा प्रभु में आनंदित रहे, तो हम भी हर परिस्थितियों में आनंदित रहना सीखे, प्रभु के वचन में, गीतों में, प्रेम में, प्रार्थना में ,आराधना इत्यादि में हम आनंदित रहे।
कड़वाहट – परमेश्वर के उस ज्ञान में बने रहे जो ऊपर से परमेश्वर की और से आता है, जो पवित्र , मिलनसार, कोमल, मृदुभाव और दया और अच्छे फलों से लदा होता है, कड़वाहट के बजाए हम इनमें बने रहे (याकूब 3: 17)
क्रोध – हम परमेश्वर जैसे विलंब से क्रोध करना सीखे, जल्दबाजी में अपने बहुमूल्य रिश्ते या प्रिय जनो को न खो दे।
हत्या – परमेश्वर की 10 आज्ञाओं में से एक आज्ञा है की हम किसी का खून न करे, वरन हम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करे, कैन का भाई हाबिल भी उसका पड़ोसी ही था। प्रेम सब बातों को सह लेता है यदि हमें या हमारे उपहार को स्वीकृति नहीं मिलती या कम स्वीकृति मिलती है तो हम सह ले। क्योंकि प्रेम कृपालु होता है, प्रेम अनारिति नहीं चलता, प्रेम झुझलाता नहीं यदि उसकी भेंट स्वीकारी नहीं जाती तो, प्रेम कुकर्म से आनंदित नहीं होता है। अतः हम भी प्रार्थना और प्रेम, संयम और सहते हुए इन सबसे जयवंत होने पाए।
निष्कर्ष: यहां हम देखते है कि दो भाई अलग अलग कार्य को करते है, और अपने कार्य के अनुसार परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए भेंट चढ़ाते है, परन्तु परमेश्वर एक की तो भेंट ग्रहण करते है और दूसरे की भेंट ग्रहण नहीं करते है, क्योंकि वह भेंट भली इच्छा से नहीं चढ़ाई गई थी और उसके पीछे पाप छिपा हुआ था, हमारे परमेश्वर जो ह्रदय को जांचनेवाले है उन्होंने ये जांचा इसलिए उसकी भेंट को ग्रहण न किया गया। लेकिन इस बात पर बड़ा भाई कैन का हृदय जलन से भर गया, और जलन ने कड़वाहट और कड़वाहट ने क्रोध और क्रोध ने एक हत्या का रूप ले लिया और उस क्रोध का नतीजा, उसने अपने ही सगे भाई की हत्या कर दिया और अपने भाई को हमेशा के लिए खो दिया, और परमेश्वर और मनुष्य की नजरो में वह पापी ठहरा। परमेश्वर ने उसे बताया कि उसकी भेंट पाप के कारण ग्रहण नही की गई है, उसे पाप के ऊपर प्रभुता करनी है, यदि वह ऐसा करता तो वह इतने बड़े अपराध से बच जाता और परमेश्वर और मनुष्य दोनो का अनुग्रह पाता। और वह अपने भाई को खोने से बच जाता, यदि हम उस परिस्थिति में आए तो प्रार्थनाओं और परमेश्वर की सामर्थ्य और वचनों द्वारा उनपर जय पाने पाए!
परमेश्वर आप सभी को आशीष करे।
Preeti Masih
IPC. Paschim Vihar.